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बुधवार, 13 जुलाई 2011

एक चिट्ठी सब मां बाप के नाम








आज किसी सरकार और किसी मंत्री के नाम मैं कोई चिट्ठी नहीं लिखने जा रहा हूं , उनसे तो शिकायत का सिलसिला चलता ही रहेगा , लेकिन इधर कुछ दिनों में अपने कार्यालीय और निजि अनुभव से कुछ तल्ख सा महसूस किया और शायद उसे लेकर बहुत असहज भी रहता हूं । ये सच है कि आज जमाना रफ़्तार का है , सब कुछ रफ़्तारमय है , रिश्ते , नाते , उम्र , बचपन से जवानी तक का सफ़र , और जवानी क्या जिंदगी  से मौत का सफ़र भी .सब कुछ रफ़्तारमय हो गया है । खैर मेरा मकसद आज कुछ कुछ इसी से जुडा है । ये चिट्ठी आज देश के तमाम मां बाप के नाम लिख रहा हूं , नहीं नहीं , कोई लंबा चौडा भाषण नहीं , नहीं जी कोई वादा भी नहीं , न बाबा बहुत खर्चीला और बहुत कठिन भी नहीं है देखा जाए तो ।

देश के सारे मम्मी डैडियों ,

सादर अभिवादन । आपके बच्चे खूब फ़लें फ़ूलें , और इस देश का ऐसा सुनहरा भविष्य बनें और सच कहा जाए तो मां बाप के रूप में आप सबकी कडी मेहनत को देखते हुए इसमें मुझे कोई संदेह भी नहीं । लेकिन पिछले कुछ समय में मैंने देखा और पाया है कि ,गलियों से लेकर सडकों तक , दुपहिए और चारपहिए तक लिए हुए बहुत कम उम्र के बच्चे , जी हां आपके और हमारे घरों के बच्चे ही , बहुत ही तेज़ रफ़्तार से जाने कौन सी दौड लगा रहे हैं । मुझे लगता है कि चलो कुछ दिन भागदौड कर शायद थकहार कर रफ़्तार थोडी कम हो जाएगी , लेकिन अफ़सोस कि वो तो दिनों दिन बढती ही जा रही है । वे एक दूसरे से टकराते हैं , बहुत बार इतजी ज़ोर से से कि उनमें से एक जाने कहां और किस रास्ते चला जाता है । घर इंतज़ार करते रह जाते हैं ।


तो मेरी गुजारिश , आप सब मम्मी पापाओं से सिर्फ़ इतनी है कि अपने बच्चों को तब तक , सिर्फ़ तब तक बाईक , सकूटर ,स्कूटी और कार चलाने के लिए मत दीजीए ,क्योंकि ,एक उम्र तक बच्चे सायकल चलाते ही अच्छे लगते हैं । मैं मानता हूं कि , मोबाईल , नेट जैसे साधन अब जरूरत का रूप ले चुके हैं और ऐसा ही शायद आपको अपनी बाईक , या स्कूटर से जाने वाले अपने बच्चों की जरूरत लगती हो , लेकिन इसके बावजूद भी सिर्फ़ ये ध्यान रखिए कि , चाहे थोडी देर के लिए ही रफ़्तार की चाभी अपने उस बच्चे के हाथ थमा कर आप कितना बडा खतरा बना देते हैं । वो एक आत्मघाती बम के समान ही होता है । सबसे बडी त्रासदी ये है कि ऐसी दुर्घटनाओं में एक आखिरी सहारे के रूप में मिलने वाला दुर्घटना मुआवजा तक नहीं मिल पाता है ।

आप इस बात की गंभीरता को समझिए ,क्योंकि घर के चिराग अब बहुत जल्दी जल्दी बुझने लगे हैं , यदि रफ़्तार यही रही तो फ़िर पूरी बस्ती में अंधेरा ही रहेगा बस । उम्मीद है कि , आप अपने बच्चों को खुद बुलाई जाने वाली इस मौत से बचाने की पूरी कोशिश करेंगे ।